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सहारनपुर, उत्तर प्रदेश, India
वो आदमी है आम सा, इक क़िस्सा ना तमाम सा। ना लहजा बेमिसाल है, ना बात में कमाल है। है देखने में आम सा, उदासियों की शाम सा। कि जैसे एक राज़ है, खुद से बे-नियाज़ है। ना महजबीं से रब्त है, ना शोहरतों का खब्त है। वो रांझा, ना क़ैस है, इन्शा, ना फैज़ है। वो पैकरे इखलास है, वफा, दुआ और आस है। वो शख्स खुदशनास है, तुम ही करो अब फैसला। वो आदमी है आम सा...! या फिर बहुत ही खास है, वो आदमी 'रियाज़' है। .............................. मुझे रियाज़ कहते हैं। दैनिक जागरण, मेरठ में वेस्ट यूपी स्टेट डेस्क प्रभारी के रूप कार्यरत।

Wednesday, September 21, 2011

तुम्हें इक दिन कहा था जो...

वही इज़हार काफी था
तुम्हें इक दिन कहा था जो
कि तुमसे प्यार करते हैं
वो लम्हा भूल क्यों बैठे
वो जुमला भूल क्यों बैठे
अभी शहादत मांगोगे
मेरी बेलौस चाहत की
तुम्हें इक बार फिर से वो
मुहब्बत ना मिले शायद
ये जो तुम भूल बैठे हो
तुम्हारी कम निगाही है
तुम्हें गर प्यार करना था
हमारे साथ चलना था
वो इक इज़हार सुन लेते
वही इज़हार काफी था
तुम्हें इक दिन कहा था जो
कि तुमसे प्यार करते हैं

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