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सहारनपुर, उत्तर प्रदेश, India
वो आदमी है आम सा, इक क़िस्सा ना तमाम सा। ना लहजा बेमिसाल है, ना बात में कमाल है। है देखने में आम सा, उदासियों की शाम सा। कि जैसे एक राज़ है, खुद से बे-नियाज़ है। ना महजबीं से रब्त है, ना शोहरतों का खब्त है। वो रांझा, ना क़ैस है, इन्शा, ना फैज़ है। वो पैकरे इखलास है, वफा, दुआ और आस है। वो शख्स खुदशनास है, तुम ही करो अब फैसला। वो आदमी है आम सा...! या फिर बहुत ही खास है, वो आदमी 'रियाज़' है। .............................. मुझे रियाज़ कहते हैं। दैनिक जागरण, मेरठ में वेस्ट यूपी स्टेट डेस्क प्रभारी के रूप कार्यरत।

Tuesday, September 20, 2011

मेरे हमसफर

मेरे हमसफर मेरे हमनशीं।
मैंने रब से मांगा तो कुछ नहीं।
मैंने जब भी मांगी कोई दुआ।
नहीं मांगा कुछ भी तेरे सिवा।
ये तलब क्या के मेरे खुदा।
सभी राहतें, सभी चाहतें।
वो अता करे तुझे मंज़िलें।
ये तलब क्या के मेरे ख़ुदा।
तुझे बख्त दे, तुझे ताज दे।
तुझे तख़्त दे। तुझे राज दे।
मेरे हमसफर, मेरे चारागर।
ये है दोस्ती का कठिन सफर।
मेरे साथ चलना ज़रा सोचकर।
ज़रा देख तो मेरा हौसला।
मेरे पास जो भी वो है तेरा।
नहीं और कुछ भी तेरे सिवा।
मेरी दोस्ती, मेरी ज़िंदगी।
मेरी खामोशी, मेरी बेबसी।
मेरा इल्म भी, मेरा नाम भी।
मेरी सुबह भी, मेरी शाम भी।
कि जो मिल सकें मेरे दाम भी।
वो सभी कुछ तुझे अता करे।
मेरे चारागर तू यकीन कर।
मुझे मांगना तो ना आ सका।
मैंने फिर भी मांगी यही दुआ।
कि गवाही देगा मेरा खुदा।
मैंने जब भी उससे तलब किया।
नहीं मांगा कुछ भी 'तेरे सिवा'।

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